झारखण्ड में विशिष्ट जनजाति समूह(PVTG)
जनजाति अर्थात ‘ट्राइब’ शब्द की उत्पति मूल धातु ‘टिबुज’ से हुई है जिसका अर्थ है ‘थ्री डिविजन्स’ या तीन प्रभाग । इनका एक अपना क्षेत्र है जो सैंकड़ों वर्ष से कृषि कार्य व जंगलों से प्राप्त कंद-मूल, फल-फूल आदि पर निर्भर है । इनका एक विशिष्ट क्षेत्र एवं बोली है । जिस क्षेत्र में यह निवास करते हैं, वहाँ की सामान्य बोली का भी प्रयोग करते हैं ।
झारखण्ड की पहचान आरंभ से ही जनजातिय पट्टी के रूप में रही है । यहाँ 32 जनजातियां पायी जाती हैं, जिनमें 8 जनजातियों की पहचान विशिष्ट जनजाति समूह (PVTG) के रूप में की गयी है । इन विशिष्ट जनजाति समूहों की पहचान के लिए धाविक आयोग (1961) ने राज्य सरकार के लिए तीन बिन्दु तय किए थे –(i) तकनीकी कृषि का पूर्व स्तर, (ii) साक्षरता का अति निम्न स्तर तथा (iii) अवरुद्ध जनसंख्या
झारखण्ड में असुर, बिरहोर, बिरिजिया, कोरबा, माल पहाड़िया, सौरिया पहाड़िया, परहिया एवं सवर को विशिष्ट जनजाति समूह (PVTG) के अन्तर्गत रखा गया है, शेष 24 अनुसूचित जनजातियां प्रमुख जनजातियां हैं । 2011 की जनगणना के अनुसार झारखण्ड में विशिष्ट जनजाति समूह (PVTG) की कुल जनसंख्या 2,92,359 है, जो झारखण्ड की कुल आबादी का 0.89 प्रतिशत है ।
झारखण्ड में असुर, बिरहोर, बिरिजिया, कोरबा, माल पहाड़िया, सौरिया पहाड़िया, परहिया एवं सवर को विशिष्ट जनजाति समूह (PVTG) के अन्तर्गत रखा गया है, शेष 24 अनुसूचित जनजातियां प्रमुख जनजातियां हैं । 2011 की जनगणना के अनुसार झारखण्ड में विशिष्ट जनजाति समूह (PVTG) की कुल जनसंख्या 2,92,359 है, जो झारखण्ड की कुल आबादी का 0.89 प्रतिशत है ।
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असुर- असुर को सबसे प्राचीन जनजाति माना जाता है । इसका उल्लेख वैदिक ग्रन्थों में खूब हुआ है । श्री दुर्गा सप्तशती के द्वितीय अध्याय के श्लोकों में इनकी वीरता एवं पराक्रम का व्यापक उल्लेख मिलता है । ये हिन्दी एवं नागपुरी भाषा का भी व्यवहार करते हैं । यह मुख्यतः लोहरदगा, गुमला ,पश्चिमी सिंहभूम, रांची एवं सिमडेगा जिलों में निवास करते हैं ।
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बिरहोर- ‘बिर’ का अर्थ जंगल और ‘होर’ का अर्थ आदमी होता है । अतः नाम से ही पता चलता है कि ये जंगल के लोग हैं । मुंडारी में बिरहोर का अर्थ लकड़ी काटने वाला (लकड़हारा) होता है । बिरहोर झारखण्ड की विलुप्त होती जा रही अल्पज्ञात विशिष्ट जनजाति समूह है । यह एक घुमन्तू जाति है । इस जनजाति की ओर सर्वप्रथम ब्रिटिश प्रशासकों का ध्यान 19वीं शताब्दी के मध्य में गया था । यह मुख्य रूप से रांची ,हजारीबाग ,पश्चिमी सिंहभूम ,चतरा, लोहरदगा आदि जिलों में निवास करते हैं ।
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बिरजिया- ‘बिर’ का अर्थ जंगल और ‘जिया’ का अर्थ रहने वाला होता है । बिरजिया को असुर जनजाति का ही एक उपभाग माना जाता है । बिरजिया अपने को पुंडरिक नाग का वंशधर मानते हैं । उनका मानना है कि वे विंध्याचल से यहाँ दुर्जन शाल के साथ आए । पूर्ववर्ती संदर्भों में बिरजिया की अलग जनजाति के रूप में कम ही चर्चा हुई है । बिरजिया का निवास क्षेत्र गुमला,लोहरदगा, पलामू एवं लातेहार आदि जिलों में देखा जा सकता है ।
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कोरवा- ऐसा माना जाता है कि झारखण्ड में कोरवा मध्यप्रदेश से आए । ये मुंडा की एक छोटी शाखा है । कोरवा को कोलेरियन जनजाति से संबन्धित माना गया है । ये मुख्य रूप से गढ़वा, पलामू, हजारीबाग, गुमला, सिमडेगा एवं सराईकेला-खरसावां में सकेंद्रित है ।
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माल पहड़िया – यह पहड़िया जाति की दो प्रमुख शाखाओं में से एक है । दूसरी शाखा को सौरिया पहड़िया या मालर कहा जाता है । माल पहड़िया के एक उप वर्ग के रूप में कुमार भाग पहड़िया को माना जाता है । रिजले ने इन्हें द्रविड़ वंश का माना है । यह देवघर, गोड्डा, साहेबगंज, पाकुड़, धनबाद, पूर्बी सिंहभूम एवं जामताड़ा ज़िले में मुख्य रूप से निवास करते हैं ।
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सौरिया पहड़िया – पहड़िया जनजाति के दो वर्गों की पहचान की गयी है - सौरिया पहड़िया और माल पहड़िया । कुमार भाग पहड़िया अपने को इसकी तीसरी शाखा मानते हैं । इस जनजाति का सकेन्द्रन संथाल परगना के जिलों में है ।
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परहिया- परहिया झारखण्ड की एक लघु जनजाति है । ये पलामू की पहाड़ियों में पीढ़ियों से रहते आ रहे हैं । संडर (1891) इसे द्रविड़ समूह की जनजाति मानते हुए कहते है कि “ये मूल रूप से पलामू के महाराजा के ‘दुआर पुजार’ या पुजारी थे । रिजले (1891) ने परहिया को पलामू का लघु द्रविड़ जनजाति समूह कहा है । इनका निवास प्रमुखता से पलामू क्षेत्र में है, किन्तु रांची, हजारीबाग, गिरिडीह, चतरा एवं कोडरमा आदि जिलों में भी आंशिक तौर पर इनका निवास है ।
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सबर – सबर झारखण्ड की अल्पसंख्यक विशिष्ट जनजाति समूह (PVTG) है । अर्थवेद में सबर की चर्चा एक अपरिग्रही एवं सीमित साधन वाली जनजाति के रूप में हुई है । अनेक प्राचीन संस्कृत साहित्य (800 ई॰पू-1200 ई॰) में सबर का उल्लेख मिलता है । डाल्टन के वर्णन से ज्ञान्त होता है कि चेरो पर विजय प्राप्त कर सबरों ने कीकट प्रदेश में 500 ई॰से 990 ई॰ तक शासन किया । सबर राजा फुन्दी चंद्र को स्वयं भोज राजा या एक मत के अनुसार उसके वंशज जयदेव ने खदेड़ दिया और भोजपुर राज्य की स्थापना की । इनका निवास कोल्हान प्रमण्डल में है ।